कहीं खुशी कहीं गम
कभी खुशी कभी गम
ऐसा लोग कहते हैं ।
परन्तु मैंने तो पाया है,
हर खुशी के पीछे गम,
हर खुशी के पीछे आँसू ।
खुशी तो मात्र मुखोटा है,
असल चेहरा तो गम ही है।
पूरी दुनिया यही है,
लोग अपने दर्द को,
अपने आंसुओं को छुपाये,
खुशी का मुखोटा लगाए,
भटक रहे हैं इधर उधर ।
मुखोटा हटायें किसी तरह तो,
पायेंगे चेहरा आँसुओं से लथपथ।
रिश्ते भी महज़ धोखा है,
कब किस रिश्ते ने,
हमें सुख दिया है,
तसल्ली दी है,
बल दिया है जीने का ।
हमारा अकेले का कारंवा,
सुखद था, एक सन्तोष था ।
कारंवा में लोग जुड़ते गए,
गमों का विस्तार होता चला गया ।
जिन रिश्तों के जीवन के लिए,
हमने अपना सब कुछ खो दिया,
वे रिश्ते अब हमारे समक्ष,
खड़े हैं प्रश्नों का, आशंकाओं का,
एक महासागर लिए ।
अब तो रिश्तों के नाम पर,
घृणा होती है ।
इन आँखों ने,
रिश्तों को तारतार होते देखा है,
महज एक तुच्छ स्वार्थ के ख़ातिर ।
जीन रिश्तों के समक्ष,
हमनें विश्वास का समुन्दर उड़ेल दिया,
वे रिश्ते अब हमारे विश्वसनीयता की,
अत्यन्त कठिन परीक्षा ले रहे हैं ।
यहाँ परीक्षक भी वही हैं,जाँचकर्ता भी वही हैं,
घोषित परिणाम करने वाले भी वही हैं ।
क्या यही है जीवन,
क्या हम जन्म लिए हैं,
गमों का बोझ ढ़ोने के लिए ही,
होने आँसुओं से लथपथ ।
क्या कोई रास्ता है,
इस गम भरे जीवन से निज़ात पाने का,
जीवन को खुशियों से भर पाने का ।
मुझे तो अब लगता है,
रोते हुए आये हैं हम,
जीवन भर रोते रहे,
अंत में भी रोना ही है ।
आश्चर्य जिस जीवन ने,
हमें केवल गम दिया,
धोखा और आँसू दिए,
उस जीवन से यह कैसा मोह ?
–दिनेश राव
No comments:
Post a Comment