Tuesday, April 28, 2020

मानव जीवन में मन की भूमिका

_*मानव जीवन में मन की भूमिका*_

*मन के हारे हार है! मन के जीते जीत!!*

*मन चंगा तो कठौती में गंगा !*

मानव जीवन में मन की बड़ी भूमिका है । मन के नियंत्रण में न होने से अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ, विसंगतियाँ, समस्यायें, उलझने--------स्वतः ही उत्पन्न हो जाती हैं । रोगों का कारण भी मन ही है, मन में सर्वप्रथम रोग उत्पन्न होता है, तब तन रोगी होता है । ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, अनिद्रा-----जैसे लाइलाज महारोगों के पीछे भी मन ही है । इन रोगों का मूल कारण तनाव है, तनाव का कारण मन का विचलन ही है । क्रोध, हिंसा, ईर्ष्या, द्वेष-----आदि भावों का कारण भी मन है, हम अच्छी तरह से जानते हैं कि इन भावनाओं का हमारे जीवन में कितना दुष्प्रभाव पड़ता है , ये भावनायें हमारा जीवन को नर्क सा बना देती हैं । उत्साह, उमंग, उल्लास एवं उत्तेजना पूरित हमारा जीवन होना चाहिए, परन्तु हम पाते हैं कि इनका हमारे जीवन में नितांत अभाव है, इनके बगैर हमारा जीवन पूर्ण रूप से नीरस है । जीवन में नकारात्मक भाव का कारण भी मन ही है । हम जानते हैं कि जीवन संग्राम में हर क्षेत्र में विजयी होने के लिए सकारात्मक भाव की हमें कितनी आवश्यकता है ??
अब प्रश्न उठता है कि जब मानव जीवन में मन के नियंत्रण की इतना महत्व है, तो यह कैसे सम्भव हो पायेगा ??
इस पृथ्वी पर मन पर नियंत्रण का एक मात्र उपाय है– *विहंगम योग* ।
विहंगम योग की साधना से मन पर पूर्ण नियन्त्रण पाया जा सकता है, यहाँ तक कि हम इस साधना के द्वारा मन को अपने कारण अक्षर में विलीन कर अमन भी हो सकते हैं ।
जब विहंगम योग की साधना इतनी प्रभावशाली है, जीवन के लिए उपयोगी है या यह कहा जाए तो  अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है कि विहंगम योग की साधना के बगैर जीवन जीना ही असम्भव है । 
तो क्यों न हम विहंगम योग की साधना को अपने दिनचर्या का अंग बना लें ??
क्यों न हम ऐसा प्रयास करें कि हमारी जीवन शैली में विहंगम योग की साधना पूर्ण रूप से समाहित हो जाये ??

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