आत्मा को मनुष्य देह का प्राप्त होना, अत्यन्त दुर्लभ है, कितने ही युग–कल्प व्यतीत होने के पश्चात प्रभु की अहेतुकी कृपा से यह सौभाग्य प्राप्त होता है । इससे अधिक दुर्लभ है–सदगुरु का मिलना । सदगुरु के मिलने के पश्चात दुर्लभ है–सदगुरु की सेवा का अवसर प्राप्त होना । अतः जब भी सेवा का परम दुर्लभ अवसर प्राप्त हो, उस अवसर से किसी भी स्थिति–परिस्थिति में नहीं चूकना चाहिए । सेवा ही भक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है और भक्ति सर्व प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है ।
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